मेरा पिछला जन्म - एक शिवभक्त के रूप में
🌷मेरा पिछला जन्म - एक शिवभक्त के रूप में🌷
एक पूर्व जन्म की छोटी सी झलक देखना मेरे लिए रोमांचक और साथ ही आश्चर्यजनक भी थी।
एक अलग युग, एक अलग समय, अलग क्षेत्र और एक अलग शरीर की भावना आकर्षक थी।
मुझे अपने मन की आँखों और चेतना को समायोजित करके, अपने अतीत को देखने में सक्षम होने में, समय लगा।
भावनाएं अनिश्चितता के साथ नृत्य कर रही थीं।
हमारे पास पाँच इंद्रियाँ हैं और फिर भी एक और जिसे आमतौर पर छठी इंद्रिय कहा जाता है। मैंने अपने छठे भाव पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया और उस समय क्षेत्र में अन्य इंद्रियों की बराबरी करने के लिए इसे पर्याप्त रूप से चार्ज किया।
धीरे-धीरे मैने आस पास को महसूस करना शुरू किया। नई जगह की ताजगी और उसके प्राचीन होने का स्वाद को अनुभव करना शुरू कर दिया।
अब मेरी चितना ने मेरे लिय स्पष्टता का मार्ग बनाना शुरू कर दिया। मेरी समझने की क्षमता को बेहतर करने हेतु राह दिखाई।
मैंने एक जंगल में था जो अति विशाल था और मैदानी इलाके पर था।
जंगल वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध प्रतीत हो रहा था। यह निस्संदेह बहुत सुंदर था। गर्मियों के दिन में भी, चारों ओर हरियाली में लिप्त प्रतीत हो रहा था।
लेकिन ये सभी केवल एक अंश थे प्रकर्ति की सुंदरता के।
वास्तविक सुंदरता को नहीं देखा जा सकता है लेकिन महसूस किया जा सकता है।
मैं जंगल के चारों ओर मौजूद विशाल ऊर्जा को महसूस कर पा रही थी। ऐसा प्रतीत हुआ कि यह विशेष वन ऋषियों के बीच बहुत लोकप्रिय था।
इस जन्म में, मैं एक लड़का था और मेरा नाम बंसी था।
मैं एक ऐसे परिवार से था, जो भगवान श्री कृष्ण के अटूट भक्त थे। वास्तव में मुझे लगा कि मेरे गाँव में ज्यादातर हरि और कृष्ण भक्त ही शामिल थे।
मेरी उम्र लगभग 10 या 12 साल की रही होगी, जब मैंने पहली बार अपने पिछले जन्म में खुद को देखा था।
मैंने देखा कि मैं घर छोड़कर नंगे पैर और खाली हाथ जंगल चला गया।
मेरे माता-पिता मुझे रोकने के लिए मेरे पीछे दौड़ते आए और बहुत से प्रयास भी किए मुझे वापस ले जाने के लिए….परन्तु मैने दृढ़ निष्चय कर लिया था।
सन्यास धारण करने का मेरा संकल्प अडिग था।
मुझे पता था कि मैं स्थायी रूप से घर छोड़ रहा हूं।
इसके पश्चात, मैं जंगल में गया और एक छोटी सी झोपड़ी बनाई और वहीं रहने लगा। झोपड़ी वर्तमान समय के एक छोटे बेडरूम से बहुत छोटी थी ...
धीरे-धीरे मेरा ध्यान उसी जन्म के एक और समय-सीमा पर चला गया।
समय शाम 4 से 6 बजे के बीच था।
अब मैं लगभग 80 वर्ष का हो गया था और फिर भी मैं इतना ऊर्जावान और सक्रिय महसूस करता था जैसे मैं बिल्कुल युवा था।
ध्यान मुझे उसी झोपड़ी की ओर ले गया जो मेरी थी और जो उस समय खुली थी।
झोंपड़ी के अंदर दाईं ओर, एक मिट्टी का घड़ा रखा था जिसमे स्वच्छ पानी था।
उस झोंपड़ी के ठीक बीच में एक हवाना कुंड था और मैं उस हवन कुंड के सामने बैठकर हवन कर रहा था।
मैं उस हवाना में घी की आहुति दे रहा था, एक पेड़ की लंबी डाली से बंधी एक लकड़ी के चम्मच से।
मैं जोर से और लगातार “ॐ नमः शिवायः” का जाप कर रहा था।
मेरा ध्यान शिफ्टेड हुआ और मैंने स्वयं को उस जन्म में जिस स्थान पर देखा, उसे जानना चाहता था… .
इसे महसूस करने में लगभग 3-4 मिनट लग गए....उस जगह का नाम "आजकल सीतापुर" है।
उस दिन तक मुझे सीतापुर नाम की कोई जगह नहीं मिली थी।
उस जन्म में वापस…।
मैं उस यात्रा से वापस वर्तमान जीवन की ओर लौट रहा था।
और वापसी से ठीक पहले, मेरा ध्यान या आप कह सकते हैं कि चेतना ने अनुभव किया कि....मेरे समक्ष माँ पार्वती और भगवान शिव थे....वो मुझे उस जन्म में आशीर्वाद प्रदान करने आए।🌷🙏🌷🙏🌷
मेरे समक्ष दायीं ओर हवन कुंड के सामने थे और मुझे कुछ कह रहे थे.... पर तबतक मेरी चेतना मुझे इस जन्म में वापस ले आई।
🌹समाप्त🌹
************************************
बाद में मैंने सोचा कि देखना चाहिए कि क्या सीतापुर नाम का कोई क्षत्र है और क्या वो वन है?
इसलिए मैंने इंटरनेट पर सर्च किया।
सीतापुर वास्तव में मौजूद है और यूपी में है।
हमारे हिंदू धर्म में इसका अधिक महत्व था क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ महाकाव्य महाभारत लिखा गया था।
प्राचीन काल में वो नैमिषारण्य वन के नाम से प्रसिद्ध था। और वो मैदानि इलाका था।
एक पूर्व जन्म की छोटी सी झलक देखना मेरे लिए रोमांचक और साथ ही आश्चर्यजनक भी थी।
एक अलग युग, एक अलग समय, अलग क्षेत्र और एक अलग शरीर की भावना आकर्षक थी।
मुझे अपने मन की आँखों और चेतना को समायोजित करके, अपने अतीत को देखने में सक्षम होने में, समय लगा।
भावनाएं अनिश्चितता के साथ नृत्य कर रही थीं।
हमारे पास पाँच इंद्रियाँ हैं और फिर भी एक और जिसे आमतौर पर छठी इंद्रिय कहा जाता है। मैंने अपने छठे भाव पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया और उस समय क्षेत्र में अन्य इंद्रियों की बराबरी करने के लिए इसे पर्याप्त रूप से चार्ज किया।
धीरे-धीरे मैने आस पास को महसूस करना शुरू किया। नई जगह की ताजगी और उसके प्राचीन होने का स्वाद को अनुभव करना शुरू कर दिया।
अब मेरी चितना ने मेरे लिय स्पष्टता का मार्ग बनाना शुरू कर दिया। मेरी समझने की क्षमता को बेहतर करने हेतु राह दिखाई।
मैंने एक जंगल में था जो अति विशाल था और मैदानी इलाके पर था।
जंगल वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध प्रतीत हो रहा था। यह निस्संदेह बहुत सुंदर था। गर्मियों के दिन में भी, चारों ओर हरियाली में लिप्त प्रतीत हो रहा था।
लेकिन ये सभी केवल एक अंश थे प्रकर्ति की सुंदरता के।
वास्तविक सुंदरता को नहीं देखा जा सकता है लेकिन महसूस किया जा सकता है।
मैं जंगल के चारों ओर मौजूद विशाल ऊर्जा को महसूस कर पा रही थी। ऐसा प्रतीत हुआ कि यह विशेष वन ऋषियों के बीच बहुत लोकप्रिय था।
इस जन्म में, मैं एक लड़का था और मेरा नाम बंसी था।
मैं एक ऐसे परिवार से था, जो भगवान श्री कृष्ण के अटूट भक्त थे। वास्तव में मुझे लगा कि मेरे गाँव में ज्यादातर हरि और कृष्ण भक्त ही शामिल थे।
मेरी उम्र लगभग 10 या 12 साल की रही होगी, जब मैंने पहली बार अपने पिछले जन्म में खुद को देखा था।
मैंने देखा कि मैं घर छोड़कर नंगे पैर और खाली हाथ जंगल चला गया।
मेरे माता-पिता मुझे रोकने के लिए मेरे पीछे दौड़ते आए और बहुत से प्रयास भी किए मुझे वापस ले जाने के लिए….परन्तु मैने दृढ़ निष्चय कर लिया था।
सन्यास धारण करने का मेरा संकल्प अडिग था।
मुझे पता था कि मैं स्थायी रूप से घर छोड़ रहा हूं।
इसके पश्चात, मैं जंगल में गया और एक छोटी सी झोपड़ी बनाई और वहीं रहने लगा। झोपड़ी वर्तमान समय के एक छोटे बेडरूम से बहुत छोटी थी ...
धीरे-धीरे मेरा ध्यान उसी जन्म के एक और समय-सीमा पर चला गया।
समय शाम 4 से 6 बजे के बीच था।
अब मैं लगभग 80 वर्ष का हो गया था और फिर भी मैं इतना ऊर्जावान और सक्रिय महसूस करता था जैसे मैं बिल्कुल युवा था।
ध्यान मुझे उसी झोपड़ी की ओर ले गया जो मेरी थी और जो उस समय खुली थी।
झोंपड़ी के अंदर दाईं ओर, एक मिट्टी का घड़ा रखा था जिसमे स्वच्छ पानी था।
उस झोंपड़ी के ठीक बीच में एक हवाना कुंड था और मैं उस हवन कुंड के सामने बैठकर हवन कर रहा था।
मैं उस हवाना में घी की आहुति दे रहा था, एक पेड़ की लंबी डाली से बंधी एक लकड़ी के चम्मच से।
मैं जोर से और लगातार “ॐ नमः शिवायः” का जाप कर रहा था।
मेरा ध्यान शिफ्टेड हुआ और मैंने स्वयं को उस जन्म में जिस स्थान पर देखा, उसे जानना चाहता था… .
इसे महसूस करने में लगभग 3-4 मिनट लग गए....उस जगह का नाम "आजकल सीतापुर" है।
उस दिन तक मुझे सीतापुर नाम की कोई जगह नहीं मिली थी।
उस जन्म में वापस…।
मैं उस यात्रा से वापस वर्तमान जीवन की ओर लौट रहा था।
और वापसी से ठीक पहले, मेरा ध्यान या आप कह सकते हैं कि चेतना ने अनुभव किया कि....मेरे समक्ष माँ पार्वती और भगवान शिव थे....वो मुझे उस जन्म में आशीर्वाद प्रदान करने आए।🌷🙏🌷🙏🌷
मेरे समक्ष दायीं ओर हवन कुंड के सामने थे और मुझे कुछ कह रहे थे.... पर तबतक मेरी चेतना मुझे इस जन्म में वापस ले आई।
🌹समाप्त🌹
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बाद में मैंने सोचा कि देखना चाहिए कि क्या सीतापुर नाम का कोई क्षत्र है और क्या वो वन है?
इसलिए मैंने इंटरनेट पर सर्च किया।
सीतापुर वास्तव में मौजूद है और यूपी में है।
हमारे हिंदू धर्म में इसका अधिक महत्व था क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ महाकाव्य महाभारत लिखा गया था।
प्राचीन काल में वो नैमिषारण्य वन के नाम से प्रसिद्ध था। और वो मैदानि इलाका था।
अदभुत.... अविश्वनीय झलक... शंकर - पार्वतीजी क्या कह रहे थे ये जानने को नही मिला इस बात का दुःख हुवा।। और आपकी इस झलक से मान सकता हु की हर जन्म में 1 ही लिंग नही मिलता। आगे पढ़ने की बेकरार हु..
ReplyDeleteअदभुत अकल्पनीय 🙏
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